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बिहार में शराब बंदी की पूरी सच, फ़िल्मी स्टाइलों में सौदा

एकलव्य आखर
एकलव्य आखर
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  • नेपाल और झारखण्ड से शराब तस्करी को रोकने में प्रशासन विफल

बिहार से लौटकर (एकलव्य प्रकाश )

बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार की शराब बंदी की यह प्रयास एक अच्छी पहल है, कईयों के उजड़े हुए घर फिर सँवरने लगे है, परिवार के लोगो की आँखों में ख़ुशी देखी जा रही है, गरीबों के घरों में ख़ुशी की दीप जल रही है, शाम को बच्चे अपने पिता को घर आते ही गले से मिलकर आलिंगन करते नज़र आते हैं जो की कुछ दिन पूर्व तक बच्चों के आँखों में ख़ामोशी और डर साफ़ झलकती थी। ख़ास कर वो महिलाएं जो किसी का माँ तो किसी की पत्नी है उनके आंशुओं से आँचर भींगा होता था, और रोज़ भगवान् से अपनों को सकुशल घर आने की मिन्नतें करती थी, आज उनकी मुश्कान जरूर नितीश कुमार के कारण है, और रोज़ एक आशीर्वाद नितीश कुमार की इस अच्छी पहल के लिए मिलता है। भले ही लोग महिला वोट बैंक की नज़र से इसे देख रहे हों।  अच्छे कार्यों का आलोचना तो लोगों की आदत सी है, लेकिन इसका असर तो सिर्फ वो महिलाएं ही समझ सकती है जिसे रोज़ इन दिक्कतों से रूबरू होना होता था।

लेकिन एक सच जो दुःखी करने वाली है कि बिहार में पूर्ण शराब बंदी की चर्चा एक ओर जहाँ हो रही है वहीँ दूसरे तरफ प्रशासन इसमें नाकाम होती दिख रही है। भले ही शराब की दुकाने बंद हो गयी, चौक-चौराहे पर लोगों की भीड़ कम हो गयी, लेकिन शराब पड़ोसी राज्य एवं नेपाल से चोरी-छुपे धरल्ले से आ रही है, बिहार में अभी पंचायत चुनाव जारी है। पंचायत चुनाव में शराब की बिक्री में बढ़ोतरी हो जाती है, नेताओं के चमचे खुद पीते है और वोटरों में भी बांटते हैं, बिहार में शराब बंदी के बाद इसका मिलना एक अमृत सामान है। शराब बंदी का सबसे ज्यादा फायदा सैनिक उठा रहे हैं, बताते चले की सैनिकों को केंटीन से शराब की आपूर्ति की जाती है, सैनिक अपने कोटे की शराब खरीदकर नेताओं को महंगे दामों में बेच देते हैं, नेताओं के बीच सैनिकों की खोज और उससे सौदे में बिचौलिए की भी चांदी हो रही है।  नेपाल से भारत में तस्करी तो आम बात है पहले से ही नेपाल की सुपारी एवं गांजा की तस्करी जारी है, अब इसमें शराब की तस्करी भी सुमार हो गया है। नेपाल से निर्मली के रास्ते दरभंगा एवं मधुबनी तक शराब की आवाजाही अभी भी जारी है। इसमें बड़े-बड़े माफियाओं का हाथ होता है, जिसका सीमा पर तैनात अधिकारीयों से अच्छा संबंध रहता है।  सीमा पार होने के बाद निर्मली से सवारी गाड़ी (लोकल ट्रैन) के बोगियों में रखकर नेपाल से सटे जिला मधुबनी-दरभंगा में पहुँचाया जाता है। पड़ोसी राज्य झारखण्ड से बालू, गिट्टी, सीमेंट लदे ट्रकों में छिपाकर लाया जाता है, जिसको ढूंढना प्रशासन के लिए संभव नहीं है। एक बात और गौर करने वाली है की अगर आप शराब के आदी है तो आपको यह मिलना उतना भी आसान नहीं है, भले आप कितने दोगुनी रूपये खर्च करें, इसके लिए आपको किसी लिंकमेन को ढूढ़ना होगा, लिंकमैन के बाद भी बहुत से लोग इससे जुड़े होते हैं जो की बहुत सतर्क ढंग से इसे संचालित करते हैं, नहीं तो उसका एक गलती पुरे धंधे को चौपट कर देगी और जेल की हवा खानी पड़ेगी।  पहचान छुपाते हुए पंचायत चुनाव में शराब पहुँचाने के लिए माहिर एक लिंकमेन ने कहा की हम अपने जान-पहचानवाले को ही शराब मुहैया कराते हैं, वो अपने जान-पहचानवाले को मुहैया कराते है जिससे फंसने की सम्भवना कम होती है, बात-चित में मोबाइल पर हम जिस स्थान का नाम कहते हैं वहां पर हम चोरी-छुपे उस पर नज़र बनाए रहते हैं, फिर माहौल को देखते हुए उसे दूसरे स्थान का नाम कहते हैं रास्ते में हमारे आदमी अनविज्ञ होकर उसके साथ रहते है, जो की उसे पता नहीं होता, इस बीच एक कोडवर्ड दिया जाता है, जिसे हमारे आदमी को कहना होता है, फिर उसे यह सौंपा जाता है।

प्रशासन भले किसी भी तरह की रास्ता अपना ले, लेकिन इस पर अंकुश लगाना पूरी तरह संभव नहीं होगा, प्रशासन को सीमा पर चौकसी बरतनी होगी, सैनिकों के कोटे में संसोधन करना होगा, और सब से बड़ी बात की जनता सतर्क और इस अच्छी पहल को सफल करने के लिए खुद ऐसे समाज विरोधियों का खुलेआम विरोध करे।

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